Monday, December 28, 2020

प्रभात-सौंदर्य ....कौशल शुक्ला

प्रसन्न चित्त भावना, विषाद को निगल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।

निरख सुबह कि लालिमा, निशा प्रछन्न हो गयी
गगन की ओर देखकर, धरा प्रसन्न हो गयी
प्रभात में तरंग का, प्रवाह तेज हो गया
उषा ने आँख खोल दी, भ्रमर कली में खो गया

चमन में फूल खिल गया, बहार फिर मचल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।

किरण चली दुलारने, नए नए विहान को
खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को
पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय
उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय

सुगंध संग ले पवन, कली को छू निकल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।

- कौशल शुक्ला

मूल रचना

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 28 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत ख़ूबसूरत सुरमई अहसास से भरी मनोहारी कृति..

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  3. किरण चली दुलारने, नए नए विहान को
    खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को
    पुकारने लगा विहान, बाग दे रहा समय
    उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
    सुगंध संग ले पवन, कली को छू निकल गयी।
    नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
    वाह!!!
    मनभावन गीत

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  4. कौशल शुक्ला जी की अति सुन्दर रचना को प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार ।

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  5. सुन्दर रचना को प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार ।

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