जो जलने के अभ्यस्त हैं..;
वे पानी से भी जल सकते हैं..!
कविताएँ उनके लिए हैं..;
जिन्हें प्रिय है-नीला रंग..!
रिक्तताएँ
जन्मदात्री होती हैं..;
कलाओं की..!
आसन्नप्रसवा वेदना से
हूकता है-मन..!
किसी भयावह,निर्जन जंगल में
भटकते-भटकते
जो पागल हो जाते हैं..;
वे भी जन्म लेते होंगे-
किसी अग्निधर्मा,उर्वर गर्भ से ही..!
अभागे
आकाश फाड़कर नहीं आते..!
इस धरती के
दहकते हुए मञ्च पर
तुम्हें करना ही होगा-
अपने हिस्से का कत्थक..!
चुटकी-भर वातास में
भुनी जा सकती है-आत्मा भी..!
तुम
जिन्हें पा नहीं सकते..;
उन्हें गा सकते हो..!
जब समय के सींखचे से
झाँकने लगें-शताब्दियाँ..;
हृदय के बहुत गहरे धँसीं
ज़हरबुझीं,नुकीली कीलों को छूना...
कोई सम्बन्ध
किसी दर्द से बड़ा नहीं होता..!
©अकिञ्चन धर्मेन्द्र
शब्दों के कुबेर को अकिञ्चन लिखना –कुछ जमा नहीं
ReplyDeleteअद्धभुत भावाभिव्यक्ति
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर रचना....आभार ।
ReplyDeleteपुनः धन्यवाद आदरणीया हमारी कविता शेयर के लिए..!
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