कुछ मेरी भी सुनती जाओ
और कुछ अपने सवाल कहो
अब मिले हो कितने सालों बाद
कैसे गुज़रे ये साल कहो
मेरे भी दिल की कुछ सुन लो
कुछ अपने भी हालात कहो
रहने दो ज़ुल्फों को यूँ ही
तुम ऐसे ही सब बात कहो
तुम देखो मत मेरी आँखों में
बस ज़रा अपनें जज़्बात कहो
थोड़ा तकल्लुफ तो लाज़िम है
पर बार बार मत आप कहो
अब भी बिल्कुल वैसे ही हो
इसका भी कुछ राज़ कहो
क्या याद तुम्हे अब भी है वो
अपनी पहली मुलाकात कहो
अपने मौसम का प्यारा सावन
अपनी भीगी बरसात कहो
क्या भूल चुकी हो अपना माज़ी
या याद तुम्हें है हर बात कहो
खत वो सारे जो तुमको लिखे
सूखे हुए वो गुलाब कहो।
मैं तो वही पुराना सा हूँ
फिर खड़े हो क्यूँ चुपचाप कहो।
तुम क्यों झिझक रही हो मुझसे
जो कहना है बेबाक कहो।
शिकवा कोई अगर मुझसे है तो
अपने दिल की भड़ास कहो।
इतने सालों में इक भी बार
क्या आई मेरी याद कहो।
मैं तो तुम्हे अब तक न भूला
तुम भी करती हो क्या याद कहो।
- अमित 'केवल'
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह👌👌👌👌👌
ReplyDeleteअब भी बिल्कुल वैसे ही हो
ReplyDeleteइसका भी कुछ राज़ कहो
क्या याद तुम्हे अब भी है वो
अपनी पहली मुलाकात कहो
–वाहः बहुत सुन्दर लेखन
बहुत खूब..खूबसूरत अभिव्यक्ति..।
ReplyDeleteलाजवाब , बहुत ही शानदार लेखन।
ReplyDelete