प्यार का गणित
और अनाड़ी मैं!
तुम्हारे आने के पहले भी
मैं एक थी
तुमसे मिलकर
जब खुद को तुमसे जोड़ा
तब भी…..
दो की जगह एक ही रही
तुम्हारे जाने के बाद
खुद को घटाया तो
ना जाने क्यों
सिफ़र हो गई ?
क्या करूँ
बहुत पेचीदा है
इश़्क का हिसाब
समझ ही नहीं आता!
©रुचि बहुगुणा उनियाल
नरेंद्र नगर
वाह
ReplyDeleteप्रेम गली अति सांकरी
ReplyDeleteजा में दो न समाय
लाजवाब सृजन
ReplyDeleteवाह!!!