नजरो से अपनी पिलाइये तो जरा।
हस कर करीब मेरे आइये तो जरा।।
क्यूं रूठे है सनम आप हमसे।
क्या वजह है बताइये तो जरा।।
दिल है मेरा कांच का सनम।
इस पर रहम खाइये तो जरा।।
टूटकर बिखर न जाऊं कहीं।
दिल की दिल को सुनाइये तो जरा।।
प्यासे ही रह गये जाकर मयखाने।
थोड़ी ही सही पिलाइये तो जरा।।
सबकी नजरें उठ रही बार बार।
हया को आँखों में लाइये तो जरा।।
-प्रीती श्रीवास्तव
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 14 दिसंबर 2020 को 'जल का स्रोत अपार कहाँ है' (चर्चा अंक 3915) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
लाजवाब रचना
ReplyDeleteवाह वाह।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
ReplyDeleteउम्दा/बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteश्रृंगार रस की उम्मदा रचना।
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