Thursday, December 24, 2020

रूह हूं मैं ...नीलम गुप्ता

 रूह हूं मैं
मुझे चांद ना कहना
उसमें तो दाग है
मुझे फूल भी ना कहना
मुरझाना उसका भाग्य है
मै कोई परी भी नहीं
जो आसमां मे उड़ जाऊं
मै कोई किताब भी नहीं
जो रद्दी में बेच दी जाऊं
मै तेरा आज नहीं
जो कल नजर ना आऊं
मैं कोई परछाई भी नहीं
जी अंधेरे से डर जाऊं
मै तो तेरे रूह का हिस्सा हूं
जिसे तू भी मिटा नहीं सकता
अपने नाम से मेरा नाम
हटा नहीं सकता
जब भी सांस लेगा तू
मुझे ही महसूस करेंगा
जाएगा कहां भागकर खुद से
मेरा अस्तित्व तो
हर जगह मौजूद रहेगा
स्वरचित 
©नीलम गुप्ता

 

10 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुंदर रचना...

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  4. सुंदर प्रस्तुति।

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  5. बहुत खूब!!

    बेहतरीन अभिव्यक्ति

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