Wednesday, December 9, 2020

चंचल तितली ...हरिवंशराय बच्चन

रंग-बिरंगे पर फड़काती, 

तितली जब बगिया में आती 

सब बच्चो के मन को भाती,  

सब बच्चो का जी ललचाता


फूलो के ऊपर मंडराती, 

पत्तों के पीछे छिप जाती 

रंगत कैसे इतनी पाती 

नहीं किसी को भी बतलाती


जी में आता उसे पकड़कर 

हम अपने घर में ले आए 

अपनी दादी को दिखलाए 

अपने दादा को दिखलाए


यह चंचल-चालाक बड़ी है 

हाथ किसी के कभी न आती 

हाथो कि छाया भी उस पर 

पड़ी कि वह झट से उड़ जाती


तितली रानी, बोल सको तो 

इतना तो जाओ बतलाती 

मुझको याद तुम्हारी आती 

मेरी याद तुम्हे भी आती ?

-स्मृतिशेष हरिवंशराय बच्चन
मूल रचना


5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बहुत सुंदर सरस बाल कविता।

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