शब्द अगर
आईना होता
तो पहचानता
वह परछाई
जिसे घसीटा जाता है
लंबे रेगिस्तानी
रास्तों पर
प्राप्त करने को
वह खोह
जिसमे समा सके
आदमी की
तलाश और...
चाह की मंजिल.
शब्द अगर आईना
बनकर घूमता
उस जगह जहां
छिपाया जाता है
सूरज को!
दबाई जाती है चांद
की रोशनी को
तब वहां केवल
जुगनुओं की रोशनी में
मंत्रणाएं होती है
तब उस समय
शब्द बताता..
यथार्थ की कविता।
शब्द आईना बनकर
देखना चाहता है
कैसी बनावट होगी
आदमी की?
उसके अन्तर्रोदन की
पीड़ा और संवेदना
कैसी होगी?
और ....
एकांतित क्षण के
विचार
कैसे पनपते होंगे?
वस्तुतः
शब्द आईना ही होते हैं
जो बताते हैं
आदमी की औकात
कि वह कितना
गिरता है..
या गिरे हुए को
उठाता है।
जिसकी तस्वीर
खींचता रहता है
हरदम शब्द रूपी
आईना..
-डॉ. नवीन दवे मनावत
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteजी शुक्रिया
Deleteवाह
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDeleteFabulous
ReplyDeleteFabulous
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसच कहा आपने शब्द सिर्फ बोलने या लिखने के लिए नहीं होते, वे आईने जैसे होते हैं जो इंसान के अंदर छिपे सच, भावनाएं, दर्द और सोच को दिखाते हैं। आपकी यह कविता बताती है कि शब्द हमें हमारी असली पहचान से मिलवाते हैं, हम क्या सोचते हैं, कितना गिरते हैं या फिर कैसे दूसरों को उठाते हैं।
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