फिर क्यूँ सोचें कल क्या होगा ।
भले राह में धूप तपेगी,
मंज़िल पर तो साया होगा ।
दिन को ठोकर खाने वाले,
तेरा सूरज काला होगा ।
पाँव सफ़र मंज़िल सब ही हैं,
क़दम-दर-क़दम चलना होगा ।
कभी बात ख़ुद से भी कर ले,
तेरे घर आईना होगा ।
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...।
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