Thursday, December 5, 2019

देश में महँगी है ज़िंदगी ...दुष्यन्त कुमार


हालात-ए-जिस्म सूरत-ए-जाँ और भी ख़राब 
चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब 

नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे 
होंटों में आ रही है ज़बाँ और भी ख़राब 

पाबंद हो रही है रिवायत से रौशनी 
चिम्नी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब 

मूरत सँवारने में बिगड़ती चली गई 
पहले से हो गया है जहाँ और भी ख़राब 

रौशन हुए चराग़ तो आँखें नहीं रहीं 
अंधों को रौशनी का गुमाँ और भी ख़राब 

आगे निकल गए हैं घिसटते हुए क़दम 
राहों में रह गए हैं निशाँ और भी ख़राब 

सोचा था उन के देश में महँगी है ज़िंदगी 
पर ज़िंदगी का भाव वहाँ और भी ख़राब 
-दुष्यन्त कुमार

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 05 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दुष्यंत कुमार जिंदाबाद 🙏🙏🙏

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