Tuesday, December 10, 2019

रिश्तों पर बर्फ....... दिलबागसिंह विर्क


अहम् की पट्टी 
स्वार्थ के फाहे रखकर 
जब बाँध लेते हैं हम 
सोच की आँखों पर 
तब जम जाती है 
रिश्तों पर बर्फ 
दम घुट जाता है रिश्तों का 

दिल में गर्माहट रखकर 

बढाते हैं जब हाथ 
मिट जाती हैं सब दूरियां 
पिघल जाती है बर्फ 
जीवित हो उठते हैं रिश्ते 
प्यार की संजीविनी पाकर 

रिश्तों पर बर्फ 

जमने और पिघलने का 
कोई मौसम नहीं होता 
अविश्वास, अहम्, स्वार्थ  
जमा देते हैं बर्फ 
विश्वास, वफा, प्यार 
पिघला देते हैं इसे !!

लेखक परिचय - दिलबागसिंह विर्क 


2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 10 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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