Thursday, December 12, 2019

स्त्री मन की पीड़ा....गुंजन गोयल


पीड़ा जब अति रूप धारण करती है
तब गर्भ से जन्मती हूँ .. मैं
शब्दों का एक गोला
नर्म, गुदाज़, लिजलिजा,
मेरे खुद के खून से सना हुआ
जिसे देखने भर से
घिन्नाने लगती है ये दुनिया
पर मेरा क्या
मैंने तो कोख में पाला है इसे
खुद के खून से सींचा है इसे
कभी मेरे मन की पीड़ा को
महसूस करके तो देखो
एक बार उसे जन्मके तो देखो
प्राण तज़ दोगे
वहीँ के वहीँ ..
शब्दों को जन्मना आसान नहीं होता
खासकर तब जब लहुलुहान हो जाती हैं
हमारी संवेदनायें
तब जब खून से लिसड़ जाती हैं
हमारी भावनायें ..

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