Friday, October 4, 2019

कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'....VenuS "ज़ोया"


तौक़ीर ओ ऐतबार ओ इस्मत हो या हो 'माँ का प्यार'
ये वो दौलत है , जो फिर ना मिले उम्र भर कमाने से

ए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म  ज़माने में 
उकताहट सी हो गयी है मुझे अब  इक ही फ़साने से


अब तो वो याद भी नही के जलाए दिल ओ जाँ मेरी  
फितरती दर्द ही रह-रह के आना चाहता है बहाने से

सुना है कुछ ख़ास तू भी नही नाम - ए - आमाल में 
होता गर , तुझे फुर्सत मिलती कभी मुझे सताने से

तजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
कई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !!


--  VenuS "ज़ोया"

13 comments:

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    1. आभार उत्साह बढ़ाने के लिए

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    1. आभार उत्साह बढ़ाने के लिए

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. utsaah bdhaane aur lekhan ko is kaabil smjhne ke liye bahut bahut aabhaar

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  5. कई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से ।
    बहुत उम्दा हर शेर आपकी रचनाएं काफी गहरी होती है ज़ोया जी।
    अनुपम सृजन।

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    1. Kusum ji

      लिखने वाले के लिए सबसे अच्छी बात ये होती है जब पढ़ने वाला उन एहसासो को समझे जिन्हे लिखने वाले ने शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया हो
      मर्म समझने के लिए धन्यवाद
      आभार उत्साह बढ़ाने के लिए

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  6. संजय ji

    :)
    aapne hmeshaa mujhe bahut hounslaa diya hain...bahut bahut dhanywaad

    hmeshaa mera utsaah bdhaane aur sath dene ke liye tah e dil se shukriya

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