जब भी मन होता है
तुमसे मिलने का
उसी पेड़ की छाव में
आ जाता हूँ,
पछी घोसले नहीं बनाते
अब इस पेड़ पर
तो क्या हुआ
छाव में बैठते तो है ,
ये आज भी ,
उन हठीले तुफानो का सबसे मजबूत प्रतिद्वंदी है
जिसमे न जाने कितने घर उजड़ गए
और ये खड़ा देखता रहा ,
"बस रिश्ते कमजोर पड़ गए
जो इसकी छाव में बने"
- अमरेंद्र "अमर"
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर लाजवाब भाव प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा सृजन।