Sunday, October 20, 2019

अपनी-अपनी रात का मातम मनाओ ...आबिद

अपने-अपने दर्द का किस्सा सुनाओ,
रात भर देगी वगरना सबके घाव।

कुछ सुलाओ आरज़ू को कुछ जगाओ,
घटती-बढ़ती टीस की लज़्ज़त उठाओ।  

फिर कोई टहनी कोई पत्ता हिलाओ,
ऐ मेरे ख़्वाबरो जंगल की हवाओ।

या किसी सूरज का रस्ता रोक लो,
या किसी तारीक़ शब में डूब जाओ।

आज इसे कमरे से बाहर फेंक दो,
कल इसी को ला के कमरे में सजाओ।

ओढ़ लो या कोई दस्ते-ख़ामोशी,
या किसी बहरी सदा में डूब जाओ।

अपने-अपने ख़्वाब का मलबा लिए,
अपनी-अपनी रात का मातम मनाओ।

या उड़ो वहशी बग़ूलों की तरह,
या किसी पत्थर में छुप के बैठ जाओ।

'रामनाथ चसवाल (आबिद आलमी)'

2 comments:

  1. या उड़ो वहशी बग़ूलों की तरह,
    या किसी पत्थर में छुप के बैठ जाओ।

    वाह

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  2. I read your post and it is good to read, thank you heartily for writing such a post.
    Kerala Lottery Ticket

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