तौक़ीर ओ ऐतबार ओ इस्मत हो या हो 'माँ का प्यार'
ये वो दौलत है , जो फिर ना मिले उम्र भर कमाने से
ए दिल चल के ढूंढें नया और कोई ज़ख़्म ज़माने में
उकताहट सी हो गयी है मुझे अब इक ही फ़साने से
अब तो वो याद भी नही के जलाए दिल ओ जाँ मेरी
फितरती दर्द ही रह-रह के आना चाहता है बहाने से
सुना है कुछ ख़ास तू भी नही नाम - ए - आमाल में
होता गर , तुझे फुर्सत मिलती कभी मुझे सताने से
तजस्सुम-ओ -कारगाहे हस्ती में यूँ फंसी है 'ज़ोया'
कई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से !!
-- VenuS "ज़ोया"
सुन्दर
ReplyDeleteआभार उत्साह बढ़ाने के लिए
Deleteवाह
ReplyDeleterchna ko pdhne aur sraahane ke liye dhanywaad
Deleteवाह..... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार उत्साह बढ़ाने के लिए
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
utsaah bdhaane aur lekhan ko is kaabil smjhne ke liye bahut bahut aabhaar
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ReplyDeleteकई दिनों से वक़्त ही नही शिकायत का ज़माने से ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा हर शेर आपकी रचनाएं काफी गहरी होती है ज़ोया जी।
अनुपम सृजन।
Kusum ji
Deleteलिखने वाले के लिए सबसे अच्छी बात ये होती है जब पढ़ने वाला उन एहसासो को समझे जिन्हे लिखने वाले ने शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया हो
मर्म समझने के लिए धन्यवाद
आभार उत्साह बढ़ाने के लिए
संजय ji
ReplyDelete:)
aapne hmeshaa mujhe bahut hounslaa diya hain...bahut bahut dhanywaad
hmeshaa mera utsaah bdhaane aur sath dene ke liye tah e dil se shukriya
Aabhaar Joya ji
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