तसव्वुर से उस के मेरा आशियाँ रोशन है,
जैसे की इस सेहरा में एक दरिया रोशन है ।
कल की फ़िक्र क्यूं करेगा, अंधेरों में भी वो,
उस गरीब के चूल्हे में तो आसमां रोशन है ।
पुकार लेती है अपनी मां को अक्सर दर्द में,
दुल्हन के दिल में अब भी मायका रोशन है ।
भटक गया फ़िर भी भटकेगा नहीं मुसाफ़िर,
हर कदम पर रास्ते पर वो कारवाँ रोशन है ।
ज़ुबान पर सच्चाई, दिल में न डर किसी का,
'अख़्तर' रोम रोम में मेरा ख़ुदा रोशन है ।
-अख़्तर
वाह
ReplyDeleteलाजवाब सृजन
ReplyDeleteभटक गया फ़िर भी भटकेगा नहीं मुसाफ़िर,
हर कदम पर रास्ते पर वो कारवाँ रोशन है ।
वाह!!!
I read your post and it is good to read, thank you heartily for writing such a post.
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