लुटे न देश कहीं आज लंतरानी में ।
लगा रहे हैं मियां आग आप पानी में।।
खबर है सबको किधर जा रही है ये कश्ती ।
जनाब जीते रहें आप शादमानी में ।।
अजीब शोर है खामोशियों के बीच यहाँ ।
बहें हैं ख़्वाब भी दरिया के इस रवानी में ।।
सवाल जब से तरक़्क़ी पे उठ रहा यारो ।।
चुरा रहे हैं नज़र लोग राजधानी में ।।
लिखेगा जब भी कोई क़त्ल की सियासत को ।
तुम्हारा जिक्र तो आएगा हर कहानी में ।।
किसे है फिक्र यहां उनकी बदनसीबी की ।
कटोरे ले के जो निकले हैं इस जवानी में ।।
ऐ नौजवां तू जरा मांग हक़ की रोटी को ।
बहुत है जादू सुना उनकी मिह्रबानी में ।।
यकीन हम भी न करते अगर खबर होती ।
मिलेंगे ज़ख्म बहुत प्यार की निशानी में ।।
- नवीन मणि त्रिपाठी
वाह बहुत खूब।
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