आता नहीं क़रार दिले-बेक़रार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में
वो मुब्तला है ग़म में, ख़ुशी में या प्यार में
इक दिल है वो भी अपने कहाँ इख़्तियार में
जाया करेंगे वक़्त नहीं इंतज़ार में
धोखे मिले है हमको बहुत ऐतबार में
होता है अगर खेल कभी प्यार-प्यार में
फिर जीत में कहाँ है मज़ा, है जो हार में
गुम हो गयी सदा मेरी चीख़ो-पुकार में
फिर मुझको डूबना ही पड़ा बीच धार में
पूछा जो हमने हाल जवानों ने ये कहा
हैं डिग्रियाँ हमारी ग़मे-रोज़गार में
पहले चला गया कोई जायेगा बाद में
सच है यही लगे हैं यहाँ सब क़तार में
जाओगे कहा बचके भला उससे ‘क़म्बरी’
हर शय है इस जहान की उसके हिसार में
-अंसार कम्बरी
वाह
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर उम्दा हर शेर बेमिसाल।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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