थक गया यह सोच कर रस्ता दिखा देगी मुझे
अपनी ही रफ़्तार से चलती रही है जिन्दगी
सुन, तू मेरी माँ नहीं, काम वाली बाई है..
शहर में मिलती नहीं, गाँव से आई है .
कोई भी पूछे, तो सबको यही बताना..
यहाँ मत रुक, जा अन्दर चली जा ना .
घंटी बजे तो तुरंत बहार आना है ..,
'जी' कह कर अदब से सर झुकाना है ...
मुझसे मिलने आये विजिटर्स के लिए ...,
'शालीनता' से चाय - पानी लाना है...
बहू 'मैडम' और में तेरे लिए 'सर' हूँ.
अब मैं 'पप्पू' नहीं, बड़ा अफसर हूँ..
माँ हंसी, फिर बोली मुझे मंजूर है ..,
तेरी उपलब्धि पर मुझे गुरुर है. ..
बचपन में गोबर बीनने वाला पप्पू. ...,
आज जिले का माई-बाप और हुजूर है. ..
नौकरी तो मैं वर्षों से कर रही थी ..,
गंदगी साफ़ कर, तेरी फीस भर रही थी..
दिल्ली कोचिंग का शुल्क देने के लिए ....,
में ख़ुशी-ख़ुशी 'पाप' कर रही थी ...
सुनो, बाई, जल्दी से नाश्ता लगाओ ....,
तभी 'मैडम' की कर्कश आवाज आई थी ..../
वह जो धरती पर ईश्वर का विकल्प थी .....,
अपनी नियति पर उसकी आँख छलक आई थी...//
वाह
ReplyDeleteबहुत ही मर्मान्तक काव्यचित्र कवि की सधी लेखनी से जो समाज का विद्रूप चेहरा दिखाता है |
ReplyDeleteपर बहु को तो नहीं माँ ने बेटे को पाला था
खुद भूखी थी पर उसको जी भर दिया निवाला था
बेटा है कृतघ्न तो बहु बहुत है मक्कार
देना होगा हिसाब कभी जो किया है अत्याचार
माँ की आहें एक दिन लग समय लौट वही आयेगा
आज पति ने आँख दिखाई माँ को कल बेटा उसे दिखाएगा
जब गरीबी में पला बेटा भी माँ का ना हो पाया
कैसे धनवान पिता बेटे से कोई आस रख पायेगा !
आज के कटु सत्य पर आधारित बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!!