सुन, तू मेरी माँ नहीं, काम वाली बाई है..
शहर में मिलती नहीं, गाँव से आई है ...
कोई भी पूछे, तो सबको यही बताना..
यहाँ मत रुक, जा अन्दर चली जा ना ....
घंटी बजे तो तुरंत बहार आना है ..,
'जी' कह कर अदब से सर झुकाना है ...
मुझसे मिलने आये विजिटर्स के लिए ...,
'शालीनता' से चाय - पानी लाना है...
बहू 'मैडम' और में तेरे लिए 'सर' हूँ.
अब मैं 'पप्पू' नहीं, बड़ा अफसर हूँ..
माँ हंसी, फिर बोली मुझे मंजूर है ..,
तेरी उपलब्धि पर मुझे गुरुर है. ..
बचपन में गोबर बीनने वाला पप्पू. ...,
आज जिले का माई-बाप और हुजूर है. ..
नौकरी तो मैं वर्षों से कर रही थी ..,
गंदगी साफ़ कर, तेरी फीस भर रही थी..
दिल्ली कोचिंग का शुल्क देने के लिए ....,
में ख़ुशी-ख़ुशी 'पाप' कर रही थी ...
सुनो, बाई, जल्दी से नाश्ता लगाओ ....,
तभी 'मैडम' की कर्कश आवाज आई थी ....
वह जो धरती पर ईश्वर का विकल्प थी .....,
अपनी नियति पर उसकी आँख छलक आई थी...
- डॉ. मधुसूदन चौबे
१२९, ओल्ड हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, बडवानी [म. प्र.]
मो. 7489012967
https://www.facebook.com/madhusudan.choubey
शहर में मिलती नहीं, गाँव से आई है ...
कोई भी पूछे, तो सबको यही बताना..
यहाँ मत रुक, जा अन्दर चली जा ना ....
घंटी बजे तो तुरंत बहार आना है ..,
'जी' कह कर अदब से सर झुकाना है ...
मुझसे मिलने आये विजिटर्स के लिए ...,
'शालीनता' से चाय - पानी लाना है...
बहू 'मैडम' और में तेरे लिए 'सर' हूँ.
अब मैं 'पप्पू' नहीं, बड़ा अफसर हूँ..
माँ हंसी, फिर बोली मुझे मंजूर है ..,
तेरी उपलब्धि पर मुझे गुरुर है. ..
बचपन में गोबर बीनने वाला पप्पू. ...,
आज जिले का माई-बाप और हुजूर है. ..
नौकरी तो मैं वर्षों से कर रही थी ..,
गंदगी साफ़ कर, तेरी फीस भर रही थी..
दिल्ली कोचिंग का शुल्क देने के लिए ....,
में ख़ुशी-ख़ुशी 'पाप' कर रही थी ...
सुनो, बाई, जल्दी से नाश्ता लगाओ ....,
तभी 'मैडम' की कर्कश आवाज आई थी ....
वह जो धरती पर ईश्वर का विकल्प थी .....,
अपनी नियति पर उसकी आँख छलक आई थी...
- डॉ. मधुसूदन चौबे
१२९, ओल्ड हाऊसिंग बोर्ड कालोनी, बडवानी [म. प्र.]
मो. 7489012967
https://www.facebook.com/madhusudan.choubey
एक मार्मिक और दर्द भरी रचना सच में अगर ऐसा होता है तो पपु तेरा जिन भी क्या जीना है माँ तो वो है
ReplyDeleteभगवान के बाद जो भी कुछ देती है वो माँ ही तो देती है सच में इस समाज का ये बहुत दुर्भाग्य की बात है
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
Very touching creation..
ReplyDeleteआँखें भर आती है इस तरह की रचनाओं को पढ़कर ...
ReplyDeleteधिक्कार है ऐसे बेटो पर जो माँ को ऐसा समझते हैं.बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति.
ReplyDeleteaaj ka sach ? nahi abhi duniya itni bhi
ReplyDeletenirmam nahi hui hai...marmik rachna...
बड़ी खूबसूरती से नित्य प्रति घटित एक सत्य को काव्य में पिरोने का सार्थक प्रयास किया है.
ReplyDeleteनीरज'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.com
सच को उजागर करने वाली रचना
ReplyDeleteबेहद मार्मिक 🙏