Friday, May 17, 2019

चारकोल....पूजा प्रियंवदा

याद चारकोल स्केच है 
धीरे-धीरे मन की पृष्ठभूमि में 
घुलने लगती है

तुम्हारा छूना 
एक स्थायी गोदना 
रूह के माथे पर 
धुंधलाने लगा है

आसमान 
काले और सफ़ेद के बीच 
नीला होना भुला चुका है

तुम्हारी मोहब्बत
दीमक बन ख़ोखला
कर रही है मेरे दिल को


6 comments:

  1. हृदय स्पर्शी कविता। कुछ स्मृतियों को हम भूलना नहीं चाहते हैं....शायद यह इन्ही में से एक है।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18 -05-2019) को "पिता की छाया" (चर्चा अंक- 3339) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  3. बहुत सुन्दर ।

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  4. बहुत सुंदर...... ,सादर

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  5. बहुत उम्दा।
    अथाह।

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