Saturday, May 11, 2019

श्रृंगार है हिन्दी ....रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

खुसरो के हृदय का उद्‌गार है हिन्दी।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी॥

मीरा के मन की पीर बन गूँजती घर-घर।
सूर के सागर - सा विस्तार है हिन्दी॥

जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी॥

दादू और रैदास ने गाया है झूमकर।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी॥

'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी॥

गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी॥

'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें।
'आँसू’ की करुण, सहज जलधार है हिन्दी॥

प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी॥

पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई।
भारत का है गौरव, श्रृंगार है हिन्दी॥

'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी॥

भारत को समझना है तो जानिए इसको।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी॥

सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी॥
रामेश्वर काम्बोज
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

3 comments:

  1. अतिउत्तम अभिव्यक्ति वाली रचना ।
    पर "वासुदेवः कुटुम्बकम्" की नज़र से अगर देखें तो हमें अन्य भाषाओं को भी वही सम्मान देना चाहिए जो अपनी मातृभाषा को। भाषा तो केवल मन की अभिव्यक्ति का माध्यम भर है।(ऐसा केवल मेरा मानना भर है।)

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  2. बहुत सुंदर भाव भीनी प्रस्तुति ।
    नमन।

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