हाइकु..... डॉ.यासमीन ख़ान
मौन वेदना
हँसते हुए मुख
नम हैं नैना
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कर्म है सिंधु
दूर अभी साहिल
नियति बिंदु।
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मन हिलोर
सजे याद की बज़्म
प्रेम ही ठौर।
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दिल को भाये
सदा से ही सागर
नैना रिझाये।
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महके यास्मीं
जूही,चंपा,कली सी
सजी सी ज़मीं।
डॉ.यासमीन ख़ान
02-05-2019
बहुत सुन्दर हाइकु ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-05-2019) को "आपस में सुर मिलाना" (चर्चा अंक- 3343) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'