वादे भरे विकासी बादल
है घनघोर सियासी बादल।
कहीं मसर्रत दे जायेंगे,
देंगें कहीं उदासी बादल।
कहीं अयोध्या सी बेचैनी
और कहीं पर काशी बादल।
वायुयान से खेल रहे हैं
नभ में घिरे कपासी बादल ।
बूंद मिलन का इक जरिया है
धरती छुए अकासी बादल।
मन में जब से तुम आये हो
आँखों खिले पलाशी बादल।
तुझसे जग मीठा नग़मा है
तुझ बिन लगे मिरासी बादल।।
डॉ. अनु सपन
( सर्व अधिकार सुरक्षित)
सुन्दर ।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.5.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3351 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 1 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकहीं मसर्रत दे जायेंगे,
ReplyDeleteदेंगें कहीं उदासी बादल।
ऐसे ही हैं ये बादल ....
सुंदर रचना