लौट आती देह में . . .
जल ही जीवन है,
नहीं इसके बिना कोई जीवन है,
एक बूंद से,
निश्वास होती सांस
लौट आती देह में,
जल ही जीवन है . . . ।
समझो तो सार इसका,
मीन से, जब तक,
जल में रही
सब कुछ इसका था जल,
सांस, आस, विश्वास,
न होती एक पल स्थिर,
न आती एक पल उदासी,
चंचलता हर पल रहती,
इसके साथ,
जल ही जीवन है . . . ।
हर ओर था जीवन,
सब ओर था उल्लास,
लेकिन जल में रहकर भी,
नहीं बुझी थी प्यास,
जीवन था उसका जल,
जल ही जीवन है . . . ।
नहीं रह पाता
कोई भी निर्जल
जल ही जीवन है . . . ।
वाह
ReplyDeleteबेहद आभार रचना के चयन एवम प्रकाशन के लिए ...
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर सार्थक रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को "आग बरसती आसमान से" (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जल को तो जीवन कहा भी जाता है.
ReplyDeleteजल को नष्ट करने वालों को और उसका दुरूपयोग करने वालों को यह कविता अवश्य सुनाई जानी चाहिए.