चित्र-मनस्वी प्रांजल
लीपे चेहरों की भीड़ में
सच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?
नब्ज संवेदना की टटोले
मोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?
खींचते है प्राण,अजगर बन
निष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?
सोच नहीं बदलता ज़माना
कभी नारी के परिप्रेक्ष्य में
बदलते युग के गान में दबी
सिसकियों को पहचाने कैसे?
बैठे हो कान में उंगलियाँ डाले
नहीं सुनते हो चीखों को?
नहीं झकझोरती है संवेदनाएँ?
मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे?
मृत नहीं तुम
ReplyDeleteजीवित हो
माने कैसे?
बेहतरीन...
सादर..
सारगर्भित प्रश्न - "मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे ?" फिर भी लोग मूर्तियों से याचना क्यों करते हैं भला !? जहाँ स्वयं की ही प्रतिध्वनि के सिवा कुछ नहीं मिलता।
ReplyDeleteमुखौटों का है ये जग जंगल, ठगते हैं सब चेहरे बदल-बदल ...
लिपें चेहरों की भीड़ में सच झूट पहचाने कैसे
ReplyDeleteअनुबंध टूटते विश्वास की मौन को पहचाने बन कैसे
बहुत खूब
सोच नहीं बदला जमाना।
ReplyDeleteकभी नारी के परिपेक्ष्य में।
बिलकुल सही और सटीक
नब्ज संवेदना की टटोले
ReplyDeleteमोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?...
बहुत खूब...., अत्यंत सुन्दर ।
वाह सुन्दर।
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,लाजवाब।
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