Wednesday, May 15, 2019

तुम जीवित हो माने कैसे?....श्वेता सिन्हा

चित्र-मनस्वी प्रांजल

लीपे चेहरों की भीड़ में
सच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?

नब्ज संवेदना की टटोले
मोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?

खींचते है प्राण,अजगर बन
निष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?

सोच नहीं बदलता ज़माना 
कभी नारी के परिप्रेक्ष्य में
बदलते युग के गान में दबी
सिसकियों को पहचाने कैसे?

बैठे हो कान में उंगलियाँ डाले
नहीं सुनते हो चीखों को?
नहीं झकझोरती है संवेदनाएँ?
मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे?

7 comments:

  1. मृत नहीं तुम
    जीवित हो
    माने कैसे?
    बेहतरीन...
    सादर..

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  2. सारगर्भित प्रश्न - "मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे ?" फिर भी लोग मूर्तियों से याचना क्यों करते हैं भला !? जहाँ स्वयं की ही प्रतिध्वनि के सिवा कुछ नहीं मिलता।
    मुखौटों का है ये जग जंगल, ठगते हैं सब चेहरे बदल-बदल ...

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  3. लिपें चेहरों की भीड़ में सच झूट पहचाने कैसे
    अनुबंध टूटते विश्वास की मौन को पहचाने बन कैसे
    बहुत खूब

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  4. सोच नहीं बदला जमाना।
    कभी नारी के परिपेक्ष्य में।
    बिलकुल सही और सटीक

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  5. नब्ज संवेदना की टटोले
    मोहरे बना कर मासूमियत को,
    शह मात की बिसात में खेले
    शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?...
    बहुत खूब...., अत्यंत सुन्दर ।

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  6. वाह!!श्वेता ,लाजवाब।

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