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बादल का अंदाज जुदा सा लगता है ।
सावन सारा सूखा सूखा लगता है ।।
जाने क्यूँ मरते हैं उस पर दीवाने ।
इश्क़ उसे जब खेल तमाशा लगता है ।।
काहकशाँ से टूटा जो इक तारा तो ।
चाँद का चेहरा उतरा उतरा लगता है ।।
तेरी अना से टूट रहा है वह रिश्ता ।
जिसकी ख़ातिर एक ज़माना लगता है ।।
आग से मत खेला करिए चुपके चुपके ।
घर जलने में एक शरारा लगता है ।।
दर्द विसाले यार ने ख़त में है लिक्खा ।
उस पर सुबहो शाम का पहरा लगता है ।।
छुप छुप कर सबने देखा रोते जिसको ।।
उसके दिल का ज़ख़्म पुराना लगता है ।
शम्अ जलेगा परवाना इक दिन तुुुझ से ।
हुस्न का तेरे ये दीवाना लगता है ।।
मांग रहा है वफ़ा के बदले जान कोई ।
कैसे कह दूं नेक इरादा लगता है।।
तुझको सारी रात निहारा करते हम ।
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है ।।
लिख डाला है तुमने जो कुछ पन्नों में ।
यह तो मेरा एक फ़साना लगता है ।।
-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी
शब्दार्थ -
काहकशाँ - शुद्ध फ़ारसी शब्द
उर्दू में कहकशाँ हिंदी में तारामंडल
शरारा -चिंगारी
मौलिक अप्रकाशित
काहकशाँ से टूटा जो इक तारा तो ।
ReplyDeleteचाँद का चेहरा उतरा उतरा लगता है ।।
अत्यन्त सुन्दर.....,
तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteतहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteतहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteआ0 अग्रवाल जी मेरी ग़ज़ल स्थान देने के लिए तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteसादर नमन ।
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार मई 28, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2019) को "प्रतिपल उठती-गिरती साँसें" (चर्चा अंक- 3349) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत उम्दा /बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबादल का अंदाज जुदा सा लगता है ।
ReplyDeleteसावन सारा सूखा सूखा लगता है ।।
बहुत खूब , सादर नमस्कार
उम्मदा रचना
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