चांद नहीं कहता
तब भी मैं याद करती तुम्हें
चांद नहीं सोता
तब भी मैं जागती तुम्हारे लिए
चांद नहीं बरसाता अमृत
तब भी मुझे तो पीना था विष
चांद नहीं रोकता मुझे
सपनों की आकाशगंगा में विचरने से
फिर भी मैं फिरती पागलों की तरह
तुम्हारे ख्वाबों की रूपहली राह पर।
चांद ने कभी नहीं कहा
मुझे कुछ करने से
मगर फिर भी
रहा हमेशा साथ
मेरे पास
बनकर विश्वास।
यह जानते हुए भी कि
मैं उसके सहारे
और उसके साथ भी
उसके पास भी
और उसमें खोकर भी
याद करती हूं तुम्हें।
मैं और चांद दोनों जानते हैं कि
चांद बेवफा नहीं होता।
-स्मृति आदित्य
सुन्दर।
ReplyDeleteसमर्पण का विस्तार करके सुंदर रचना। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteमैं और चांद दोनों जानते हैं कि
ReplyDeleteचांद बेवफा नहीं होता।
सुन्दर पंक्तियाँ ! आभार। "एकलव्य"
सुंदर रचना
ReplyDeleteसस्नेह आभार सभी का ....
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