शब्द अथाह है, अपार है, अनंत है l
पर...उस "अनंत का अंत" शब्द मेरा है l
हर शब्द में एक कशिश ~~~~
एक नया उन्माद होता है
शब्द प्रेम है, शब्द अनुभव है
शब्द तुममें है, शब्द मुझमें है
शब्द है भाव की काया
शब्द है आँखों की माया
शब्द वाचाल है
पर ....अनर्गल नहीं
शब्द सार्थक है, निरर्थक नहीं
किंतु मेरा शब्द अनन्य है .....
वह मूक है, मौन है
निस्तेज है, सांकेतिक है वह l
उद्दीपन, आलंबन, स्थाईभावों को
खुद में समेटे ...आंगिक - रसमयी है
हाँ !!!! मेरा वह आलौकिक शब्द "नि:शब्द" है l
क्योंकि भाव शब्द का मोहताज नहीं ~~~l
-प्रगति मिश्रा 'सधु'
दिनांक 27/06/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteवाह्हुह...बहुत सुंदर।।
ReplyDeleteशब्द को परिभाषित करती विमर्श के दायरे बढ़ाती बेहद गंभीर रचना। तीसरी पंक्ति में एक शब्द शायद कशिश है जो की टाइपिंग त्रुटि का शिकार हो गया है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
ReplyDelete"अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
गहरी सोच से बुनी रचना ...
ReplyDeleteWow ma'am👍
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