प्रेम के पनघट पर सखी री
कभी गागर भरी ही नही
मन के मधुबन मे
कोई कृष्ण मिला ही नही
जिसकी तान पर दौडी जाऊँ
ऐसी बंसी बजी ही नही
किस प्रीत की अलख जगाऊँ
ऐसा देवता मिला ही नही
किस नाम की रट्ना लगाऊँ
कोई जिह्वा पर चढा ही नही
कौन सी कालिन्दी मे डूब जाऊँ
ऐसा तट मिला ही नही
जिसके नाम का गरल पी जाऊँ
ऐसा प्रेम मिला ही नहीं
वो जोगी मिला ही नही
जिसकी मै जोगन बन जाऊँ
फिर कैसे पनघट पर सखी री
प्रीत की मैं गागर भर लाऊँ
- वन्दना गुप्ता
प्रेम की उत्कृष्टता इसी में है कि हम उसे उसकी भव्यता और विराटता के लिए आदर्श रूप में स्थापित किये रहें। ह्रदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeletesundar rachna .......badhai.
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteलगे रहो....
bahut, bahut sundar!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
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