ज़िन्दगी ने आज़माया देर तक।
दर्द ने रिश्ता निभाया देर तक।।
हम ज़माने पर बहुत भारी पड़े,
प्यार का जादू चलाया देर तक।
बे वजह बरबादियों का सिलसिला,
रास ही हमको न आया देर तक।
देखकर महफ़िल की ये ज़िंदादिली,
रात ग़ालिब तिलमिलाया देर तक।
इक ग़ज़ल बढ़िया-सी कहने के लिए,
हर रुकन हमने मिलाया देर तक।
-श्रीमती आशा शैली
vah
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-06-2017) को
ReplyDeleteरविकर शिक्षा में नकल, देगा मिटा वजूद-चर्चामंच 2541
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सुन्दर।
ReplyDelete