Tuesday, June 20, 2017

इच्छाओं की गगरी....डॉ. विवेक कुमार












यह मेरा है
यह तेरा है 
मोह माया का फेरा है।

जीवन तो 
चंद दिनों का 
डेरा है।

संबंधों 
और रिश्तों का 
यह तो बस एक 
घेरा है।

लाख लिखे कोई
जीवन का काग़ज़
रहता कोरा है।

इच्छाओं की गगरी
भरे कैसे 
यही तो बस
एक फेरा है।

इश्क़-जुनून और 
रिश्तों की बगिया में मँडराता
स्वार्थ का भौंरा है।
- डॉ. विवेक कुमार

4 comments:

  1. वाह
    बहुत सुंदर रचना

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  2. बिल्कुल सटीक....

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (22-06-2017) को
    "योग से जुड़ रही है दुनिया" (चर्चा अंक-2648)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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