भान हो जाता है जब यह
''शेष क्या रहना है''
जीवन और यथार्थ,
यथार्थ और कल्पना,
कल्पना और सच के अंतर
दृष्टव्य हो जाते है जब,
तब शून्य रह जाती है
मन की लहरों की चंचलता,
नेति नेति का ज्ञान हो जाता है ,
टूट जाती हैं व्यर्थ सीमाएं
बंधन रहित हो जाता तन मन ।
तब शांतचित्त नीला आसमान,
हरी भरी फूलों से लदी सारी धरती,
चांद, तारें,सूरज और
विश्व के सभी नक्षत्र,
मेरी धरोहर हो जाते हैं।
-सविता चड्ढा
अनहद कृति से
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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