Thursday, December 29, 2016

थोड़ी मरम्मत का जरूरत है....निदा फ़ाज़ली


बहुत मैला है ये सूरज
किसी दरिया के पानी में
उसे धोकर फिर सुखाएँ फिर
गगन में चांद भी 
कुछ धुंधला-धुंधला है
मिटा के उसके सारे दाग़-धब्बे
जगमगाएं फिर
हवाएं सो रही है
पर्वतों पर पांव फैलाए
जगा के उनको नीचे लाएँ
पेड़ों में बसाएँ फिर
धमाके कच्ची नींदों में
डरा देते हैं बच्चों को
धमाके ख़त्म करके
लोरियों को गुनगुनाए फिर
वो जबसे साथ है
यूं लग रहा है
अपनी ये दुनिया है
जो सदियों की विरासत है
जो हम सबकी अमानत है
इसमें अब
थोड़ी मरम्मत का जरूरत है
-निदा फ़ाज़ली

1 comment: