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बेहाल खुद को रोज़ बताया नहीं करो
खुश हो तो दुःख की बात सुनाया नहीं करो
मन तो तुम्हारे फूल से कोमल हैं दोस्तो
सोचों का बोझ इनसे उठाया नहीं करो
कहते हैं, चिट्ठी लिख के बताना जरूरी है
चुपके से दूर गाँव से आया नहीं करो
माना कि भूल जाना कभी होता है मगर
हर बार मेरी बात भुलाया नहीं करो
उड़ जाएगा वो आप ही कुछ देर बैठ कर
यूँ ही कोई परिंदा उड़ाया नहीं करो
हर बच्चा देख के इन्हें डर जाता है हजूर
गुस्से में लाल आँखें दिखाया नहीं करो
अपनी भले ही कसमों को खाया करो मगर
ऐ "प्राण" माँ की कसमों को खाया नहीं करो
-प्राण शर्मा
वाह सुन्दर ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-12-2016) को "दुनियादारी जाम हो गई" (चर्चा अंक-2549) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्राण शर्मा जी की सुन्दर गजल प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
ReplyDeleteअति सुन्दर गजल
ReplyDeleteअति सुन्दर गजल
ReplyDeleteप्राण जी की अदायगी का अलग ही अंदाज़ है ... लाजवाब ग़ज़ल ...
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