Saturday, December 3, 2016

कुल की मुस्कान....कुलदीप सिंह ठाकुर


ये है कौन
जो, बिगाड़ रहा संतुलन  
प्रकृति का,
इन्हें पहचानो 
जो, मार रहा
बेटियों को  
गर्भ में ही।
चाह में बेटों की
न गवाओं
बेटियों को,

न मिटाओ
भाग्य रेखा अपनी
अपने हाथों से
समाज के गुनाहगार हैं ये
मानव नहीं,
अत्याचारी और निर्दयी भी हैं
दंड के अधिकारी हैं, ये

जागो बहनों
कभी न करवाना  
भ्रूण परीक्षण
और कहना कि
नहीं मारूंगी मैं 
अपने अंश को
अपना संकल्प
परिवार को बताना

समाज से 
पुत्र-पुत्री का 
भेद मिटाना,
है लक्ष्य यही
मुस्कान का।

बचाओ बेटी 
पढ़ाओ बेटी,
है उदेश्य यही 
मुस्कान का।
-कुलदीप सिंह

6 comments:

  1. सार्थक रचना

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  2. सुन्दर सार्थक और प्रेरक रचना

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  5. This comment has been removed by the author.

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