ये है कौन
जो, बिगाड़ रहा संतुलन
प्रकृति का,
इन्हें पहचानो
जो, मार रहा
बेटियों को
गर्भ में ही।
चाह में बेटों की
न गवाओं
बेटियों को,
न मिटाओ
भाग्य रेखा अपनी
अपने हाथों से
समाज के गुनाहगार हैं ये
मानव नहीं,
अत्याचारी और निर्दयी भी हैं
दंड के अधिकारी हैं, ये
जागो बहनों
कभी न करवाना
भ्रूण परीक्षण
और कहना कि
नहीं मारूंगी मैं
अपने अंश को
अपना संकल्प
परिवार को बताना
समाज से
पुत्र-पुत्री का
भेद मिटाना,
है लक्ष्य यही
मुस्कान का।
बचाओ बेटी
पढ़ाओ बेटी,
है उदेश्य यही
मुस्कान का।
-कुलदीप सिंह
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteसार्थक रचना
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ReplyDeleteसुन्दर सार्थक और प्रेरक रचना
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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