Friday, December 30, 2016

सब जीवन बीता जाता है.....जयशंकर प्रसाद

धूप छांह खेल सदृश
सब जीवन बीता जाता है

समय भागता प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में
हमें लगाकर भविष्य-रण में
आप कहां छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है.

बुल्ले, नहर, हवा के झोंके
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है

वंशी को बज जाने दो
मीठी मीड़ों को आने दो
आंख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है

सब जीवन बीता जाता है
-जयशंकर प्रसाद

2 comments:

  1. जीवन कैसा भी हो उसे बीत जाना ही है, इसलिए खुश होकर जितने दिन जी लिए वही जीना है
    प्रसाद जी की बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुति हेतु धन्यवाद


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