Friday, December 30, 2016

सब जीवन बीता जाता है.....जयशंकर प्रसाद

धूप छांह खेल सदृश
सब जीवन बीता जाता है

समय भागता प्रतिक्षण में,
नव-अतीत के तुषार-कण में
हमें लगाकर भविष्य-रण में
आप कहां छिप जाता है
सब जीवन बीता जाता है.

बुल्ले, नहर, हवा के झोंके
मेघ और बिजली के टोंके,
किसका साहस है कुछ रोके,
जीवन का वह नाता है
सब जीवन बीता जाता है

वंशी को बज जाने दो
मीठी मीड़ों को आने दो
आंख बंद करके गाने दो
जो कुछ हमको आता है

सब जीवन बीता जाता है
-जयशंकर प्रसाद

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-12-2016) को "शीतलता ने डाला डेरा" (चर्चा अंक-2573) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जीवन कैसा भी हो उसे बीत जाना ही है, इसलिए खुश होकर जितने दिन जी लिए वही जीना है
    प्रसाद जी की बहुत सुन्दर कविता प्रस्तुति हेतु धन्यवाद


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