Wednesday, July 1, 2015

नहीं जानती क्यों.....फाल्गुनी





नहीं जानती क्यों
अचानक सरसराती धूल के साथ
हमारे बीच
भर जाती है आंधियां
और हम शब्दहीन घास से
बस नम खड़े रह जाते हैं

नहीं जानती क्यों
अचानक बह आता है
हमारे बीच
दुखों का खारा पारदर्शी पानी
और हम अपने अपने संमदर की लहरों से उलझते
पास-पास होकर
भीग नहीं पाते...

नहीं जानती क्यों
हमारे बीच महकते सुकोमल गुलाबी फूल
अनकहे तीखे दर्द की मार से झरने लगते हैं और
उन्हें समेटने में मेरे प्रेम से सने ताजा शब्द
अचानक बेमौत मरने लगते हैं..
नहीं जानती क्यों.... 

--फाल्गुनी

5 comments:

  1. बहुत कुछ अनचाहा मिलता है
    सुन्दर अभिव्यक्ति.........

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  2. वाह गहरे भावों से परिपूर्ण लाजवाब रचना

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  3. वाह गहरे भावों से परिपूर्ण लाजवाब रचना

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 2 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2024 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  5. वाकई...कुछ चीजे हम नहीं जान पाते कि‍ क्‍यों होता है..सुंदर लि‍खा

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