ख्वाहिशे चाँद ने यूँ ही बुला लिया हमको।
मेरी नज़र से कोई दूर कर लिया तुमको।।
ईद का जश्न मनाना मेरी मजबूरी थी।
बड़ी खामोशियों से फिर दबा लिया गम को।।
या इलाही तेरी मगरूरियत भी जालिम है ।
मेरे जख्मो का अफ़साना सुना लिया उनको ।।
तेरी पनाह में मुमकिन थी जिंदगी अपनी।
दौरे मुफ़लिस में था मैंने भुला लिया रब को ।।
यहाँ इबादतों पे , बददुआ ही हासिल है ।
उसके सज़दे ने फिर हैरत में ला दिया सबको।।
मेरा यकीन भी किस्मत का गुनहगार बना।
मेरी वजह से क्यों तुमने मिटा लिया खुदको।।
थी तमन्ना कि मेरा चाँद निकल आएगा ।
बेरहम बादलों ने फिर चुरा लिया उसको ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत बहुत आभार आदरणीया अग्रवाल जी ।
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया....
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