Tuesday, June 30, 2015

यात्रा का चक्र..............नीलेश रघुवंशी
















बंजर जिंदगी को पीछे छोड़ देना
बारिश को छूना चाँद बादलों से यारी
नंगे पाँव घास पर चलकर ओस से भींग जाना
खाना-बदोश और बंजारों के छोड़े गए घरों को देखना
खुद को तलाशना उन जैसा हो जाना
न होने पर ईर्ष्या का उपजना...
प्राचीन इमारतों के पीछे भागना
स्थापत्य मूर्तियों को निहारना
एक पल में कई बरस का जीवन जी लेना
ट्रेन का छूट जाना जेब का कट जाना
किसी के छूटे सामान को देखकर
बम आर.डी.एक्स. की आशंका से सिहर जाना
घर पहुँचना और पहुँचकर घर को गले लगा लेना
यात्रा का पहला नाम डर दूसरा फकीरी!
बहुत दिनों से जाना चाहती हूँ यात्रा पर
लेकिन जा नहीं पा रही हूँ
एक हरे भरे मैदान में
तेज बहुत तेज गोल चक्कर काट रही हूँ
यात्रा के चक्र को पूरा करते
खुद को अधूरा छोड़ रही हूँ...

- नीलेश रघुवंशी

भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, आर्य स्मृति साहित्य सम्मान, 
दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान, केदार सम्मान, शीला स्मृति पुरस्कार, 
युवा लेखन पुरस्कार (भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता), 
डी. डी. अवार्ड 2003, डी. डी. अवार्ड 2004
:: श्री रघुवंशी जी की अन्य रचनाएं व विस्तृत परिचय हेतु ::



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