Sunday, July 5, 2015

आओ, हम फिर से जिएं.............अजित कुमार













आओ हम फिर से जिएं
बहता-बहता मेघखंड जो
पहुंच गया है वहां क्षितिज तक...
लौटा लाएं उसे,
कहें :
'ओ, फिर से बहो!
मंद, मंथर, मृदु ‍गति से...
शोभावाही मेघ, रसीले मेघ, दूत!
जो कथा कही थी, फिर से कहो!'

और...
अपलक, अविचल
हम उसे निरखते रहें, सुनें!

-अजित कुमार

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