चेहरा-चेहरा यहाँ आज क्यूँ ज़र्द है
जिस तरफ़ देखिये दर्द-ही-दर्द है
अपने चेहरे में कोई ख़राबी नहीं
आप के आईने पर बहुत गर्द है
इस क़दर हम जलाये गए आग में
अब तो सूरज भी अपने लिये सर्द है
साथ देता रहा आख़िरी साँस तक
दर्द को दर्द कहिये न हमदर्द है
बोझ है ज़िन्दगी, इसलिए ‘क़म्बरी’
जो उठा ले इसे बस वही मर्द है
-अंसार क़म्बरी
..............फेसबुक से
इस क़दर हम जलाये गए आग में
ReplyDeleteअब तो सूरज भी अपने लिये सर्द है
वाअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
bhn ghazap prashit karne ke liye bhut bhut aabhaari hun - sada sukhi rahein ..
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