Sunday, November 26, 2017

दिल की गलियों से न गुज़र....पावनी दीक्षित 'जानिब'

बड़ी हसरत थी तमन्ना थी प्यार हो जाए 
किसी दीवाने की चौखट पे दिल ये खो जाए ।

ले चलीं हमको बहाकर अश्कों में यादें तेरी 
दिल का तूफ़ान मुझे क्या जाने कहां ले जाए।

हो गया इश्क़ तो दिवानगी का आलम है ये 
हमारे घर का पता कोई तो हमको दे जाए।

दिल की गलियों से न गुज़र ये जान लेवा हैं 
जिसको मरने का शौक़ हो तो वहां वो जाए।

इस जमाने में नहीँ मिलते वफ़ादार सनम 
किसी मगरूर से न दिल को प्यार हो जाए।

बड़े समझौते करने होंगे ये 'जानिब' सुनले 
दिल में रहकर कोई न दर्द ए बीज बो जाए ।
पावनी दीक्षित 'जानिब' 
सीतापुर

6 comments:

  1. महिला रचनाकारों का योगदान हिंदी ब्लॉगिंग जगत में कितना महत्वपूर्ण है ? यह आपको तय करना है ! आपके विचार इन सशक्त रचनाकारों के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना देश के लिए लोकतंत्रात्मक प्रणाली। आप सब का हृदय से स्वागत है इन महिला रचनाकारों के सृजनात्मक मेले में। सोमवार २७ नवंबर २०१७ को ''पांच लिंकों का आनंद'' परिवार आपको आमंत्रित करता है। ................. http://halchalwith5links.blogspot.com आपके प्रतीक्षा में ! "एकलव्य"

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  2. बहुत सुन्दर.....लाजवाब

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  3. उम्दा रचना, सुंदर प्रस्तुति।

    बदरी सी बरस आंखें रीती सी रह गई
    दिल की मिट्टी पर बस नमी सी रह गई
    दूर बादलो के पार साथ चलता रहा कोई
    पास कमी चलते हम जमीं की रह गई ।
    

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