तेरी पलकों प जो ठहरा है आँसू
समन्दर से भी वो गहरा है आँसू
कहा था घर से मत बाहर निकलना
अजी सुनता नहीं बहरा है आँसू
ख़ुशी दिल में कोई आये तो कैसे
लगाये आँख पर पहरा है आँसू
समन्दर हो के भी प्यासी हैं आँखे
समन्दर हो के भी सहरा है आँसू
तुन्हारी आँख तो सूनी है लेकिन
तुम्हारे गाल पर लहरा है आँसू
अरे सुन 'क़म्बरी' दिल के महल पर
कोई परचम नहीं फहरा है आँसू
- अंसार क़म्बरी
बात सुंदर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआदरणीया/आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (06-11-2017) को
ReplyDelete"बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि पर" (चर्चा अंक 2780)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
shandar rachna
ReplyDeletelajwab.....adbhut