लड़ते हैं, झगड़ते हैं
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं
डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,
कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.
मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.
-राजेन्द्र जोशी
पत्रिका..8 मई 2016
डराते हैं, धौंस दिखाते हैं
डरते हैं, दुबकते हैं
प्रेम करते ,
कांपते हैं
कभी तानाशाह होकर
भीख मांगते दिखते हैं.
मैं और वे
खेला करते हैं
मिलजुल कर
भोथरे हुए शब्दों को
धार देते हुए
हो जाते हैं मौन
अपना ही ताकत से
आपसी खेल में.
-राजेन्द्र जोशी
पत्रिका..8 मई 2016
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-11-2017) को
ReplyDelete"कभी अच्छी बकवास भी कीजिए" (चर्चा अंक 2788)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/11/blog-post_13.html
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