ये बता मुझसे चाहता क्या है...
तेरे लहज़े का फ़लसफ़ा क्या है ;
तुझको आख़िर बता हुआ क्या है..
सोचता है तो सोचता क्या है ;
दिल की बातें हैं तुम न समझोगे..
और समझ लो तो फ़ायदा क्या है ;
आ रहा है वो पास क्यूँ इतना..
जाने अब उसका फ़ैसला क्या है ;
जिसको ख़्वाहिश नहीं है मंज़िल की..
क्या पता उसको रास्ता क्या है ;
क्या ख़ता हो गई पता तो चले ..
तू ये टुक टुक के देखता क्या है ;
मिलना चाहो तो मिल भी सकते हैं..
फ़ासला है तो फ़ासला क्या है ;
जब बिछड़ने का मन बना ही लिया..
फिर तू मुड़ मुड़ के देखता क्या है ;
उसका ख़त पढ़ चुकी हूँ कितनी बार..
ख़त में उसने मगर लिखा क्या है..!!
-'तरुणा'
बहुत सुंदर...👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-11-2017 को चर्च मंच पर चर्चा - 2783 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति...
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