सच कहने पर कहाँ भलाई होती है,
और झूठों के हाथ मलाई होती है।
अच्छा माल कमीशन में पिट जाता है,
घटिया की जमकर सप्लाई होती है।
सारे नियम शिथिल होकर रह जाते हैं,
जब दबंग की जेल मिलाई होती है।
बारूदों से उनकी यारी ठीक नहीं,
हाथ में जिनके दियासलाई होती है।
खोटे सिक्के वहीँ चलन में आते हैं,
सरकारों की जहाँ ढिलाई होती है।
सीवन गर उघड़े तो फिर सिल जाती है,
उखड़े मन की कहाँ सिलाई होती है।
-राकेश कुमार श्रीवास्तव
कादम्बिनी से
यथार्थता को परत दर परत विश्लेषण करती अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteयथार्थता को परत दर परत विश्लेषण करती अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी में भूलवश का के स्थान पर को लिख गई है। कृपया....का...पढें।
ReplyDeleteवाह्ह्ह....बहुत सुंदर👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteवाह!!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-11-2017) को
ReplyDelete"सच कहने में कहाँ भलाई" (चर्चा अंक 2786)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'