ज़माने में धुँआ कैसा हुआ है,
यहाँ हर शख्स अंधा हो रहा है।
दुआ कोई नहीं है काम करती,
समय ने घात सब से ही किया है!
सवालों को घुमाये जो हमेशा,
नहीं आता उसे करना वफ़ा है!
अदायें अब नहीं हमको लुभाती,
जफाओं ने यही हमको दिया है!
‘अनिल’ जैसे कई बैठे हैं तन्हा,
ज़माने में यही होता रहा है!
-डॉ. अनिल चड्डा
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना अनिल जी...सवालों को घुमाये जो हमेशा,
ReplyDeleteनहीं आता उसे करना वफ़ा है!