Sunday, November 12, 2017

अहसास....डॉ. शैलजा सक्सेना

अकेलापन..
अहसास मन का,

संग-साथ..
कब जीवन भर का ?

वादे ..
रहे अधूरे

सपने..
कब हुए पूरे?,

इच्छा"..
समुद्री तरंगें,

आशा"..
जगाती उमंगें,

अनुभव..
कब सदा मीठा?

यथार्थ.
रहा सदा सीठा,

जाना..
कब स्वीकारा?

इसीलिए..
मन रहा हारा।।

-डॉ. शैलजा सक्सेना

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-11-2017) को
    "जन-मानस बदहाल" (चर्चा अंक 2787)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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